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कवि के लिए कठिन समय / मुकेश मानस


ये हो सकता है
कि बाज़ार में भाजी-तरकारी खरीदता हुआ कवि
आपको कवि जैसा ना लगे

ये हो सकता
कि कविता के अलावा कवि जो कुछ भी लिखे
उसमे आपको कोई गहराई ना दिखे

ये हो सकता है
कि कविता के अलावा कवि जो कुछ भी करे
वह आपको एकदम साधारण लगे

बड़ा ही कठिन समय है साथी
कि अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद
कवि हर वक्त
कवि नहीं रह पा रहा है
2010