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कवि नवतिका / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

कवि-प्रशस्ति - स्वच्छ पच्छ, पय नीर शुचि - रुचि, मानस क विहार
बाहित रसवति सरस्वति, जय कवि हंस उदार॥1॥
नभ - चुम्बी भावे शिखर, रस निर्झर रुचि स्वच्छ
विपिन सूक्ति जत महाकवि हिमालये परतच्छ॥2॥

1. ‘कवि उशना’ - संजीवनि विद्या विदित नीति लोक - पथ ली
ग्रह विग्रह, रुचि शुक्ल शुचि से यथार्थ पद थीक॥3॥

2. आदिकवि बाल्मीकि
- आदिम रहितहुँ चरम कवि, बालमीकि अति वृद्ध
तमसा तट बसि तम निरसि, शोको श्लोके सिद्ध॥4॥
लघुपद दूरंगम जनिक छन्द अनुष्टुप रूप
सारस्वत नगरक सुथिर कीर्ति - स्तूप अनूप॥5॥

3. व्यास - भारत प्रतिभा - रत जनिक, अनुशासन
जय पुराण मुनि, वेदहुक भेदक जे अभ्रान्त॥6॥
महाभारतक विरचनेँ, गीता-गायक ज्ञात
नाम कृष्ण, बसि द्वीप अहुँ द्वैपायन विख्यात॥7॥

4. गुणाढ्य- वृहत्कथा गुणसँ स्वयं प्रथित गुणाढ्य अजस्र
जकर सागरक बिन्दुसँ साहित सरित सहस्र॥8॥

5. भरत - सूत्र बान्हि नट जकाँ जे कविता पुतरि नचौल
भरि भरि नाट्य क रस अमृत भरत नाम रुचि पौल॥9॥

6. पाणिनि - पाणिनि अनुशासन कठिन, व्याकृति दण्डक लेल
‘जाम्बवती - हरणेँ’ स्वयं कवि बन्धन पड़ि गेल॥10॥

7. सातवाहन - गाथा अवितथ सात शत, सातवाहनक कृत्य
सहस सहस बरषहु न जे गलल विमल पद नित्य॥11॥

8. पतंजलि - पतंजलिक अंजलि भरल सुरगवीक पय - सिंधु
तन-मन वचनक मल हरिअ अमर बनिअ पिबि बिंदु॥12॥

9. भास - भासित भासक प्रभासँ, उदयन - घरक इजोत
वासवदत्ता चरित नहि युगधरि रहल इरोत॥13॥

10. भर्तृहरि - कालिन्दी शृंगार शत सरस्वती वैराग
नीति जाह्नवी भर्तृहरि उचिते कवित प्रयाग॥14॥

11. अश्वघोष - अश्वघोष कृत घोष सुनि, के नहि अछि उद्बुद्ध
जनिक सरल शुचि काव्यसँ बुद्धो बनल प्रबुद्ध॥15॥

12. कालिदास - मेघदूत जनिकर बनल, दण्ड हिमाद्रि अशेष
रघु कुमार अस्तित्वसँ कश्चिद् वाग-विशेष॥16॥
वन - कन्या लावन्यसँ, रजधानिक धनि तुच्छ
कयल कला लालित्यसँ, रति - रसना - रस छुच्छ॥17॥
कालिदास रचना रुचिर, रुचओ चिरन्तन चीत
चाखि, दाख तिख-रुख लगय, आम नीम सन तीत॥18॥

13. भारवि - प्रभा रविक भारविक लग किन्नहु नहि चमकैछ
प्रतिभा किरण किरातहुक राति प्रभात करैछ॥19॥
नारि-केलि रहितहुँ न रस - भाव पार्थ - चित लेश
मुग्ध किरातहु रूप - रुचि रसिकक भार विशेष॥20॥

14. माघ - विचरथु वन तृन - मुख तृषित कवि मृग - झुंड निदाघ
जा घरि नहि गर्जल छला माघ काव्य - वन बाघ॥21॥
त्रिगुण रूप, नव सर्ग गत नहि नव शब्दक लेश
शिश - पालहु वध निरत पुनि माघहि जीवन शेष॥22॥

15. भामह - जनिक अलंकृत काव्य बन, विकसित प्रतिभा फूल
मह मह करइछ आइ धरि से भामह अनुकूल॥23॥

16. वामन - वामन रहितहुँ लघु पदेँ, नापल रीति विचित्र
गौड़ी वैदर्भी रुचिर पांचाली गुण चित्र॥24॥

17. दण्डी - ई दण्डी नहि दण्ड कर माप - दण्ड रसहीक
अलंकार दिश रुचि कोना दण्डी - वैरागीक? 25॥

18. आनन्दवर्धन - जनिक पद - ध्वनि मात्र गुनि, आलोकित कवि - लोक
चित वर्धित आनन्द नित जय जय ध्वनि - आलोक॥26॥

19. अभिनवगुप्त - जनिक अभिनवे भारती, भरथि भरत रस गुप्त
व्यजित ध्वनि सुनि बलित अति, लोचन ज्योति विलुप्त॥27॥

20. मम्मट - पद पदार्थ सभ सार्थ अछि, मम्मट स्वयं अनर्थ
मर्म अँटल कत, जत एतय प्राकृत नाम सदर्थ॥28॥

21. शूद्रक - यथा नाम गुन फूसि थिक शूद्रक द्विज क विचार
माटिक गाड़ी सोन भरि, चारु वसन्त विहार॥29॥

22. भवभूति - पूर्व वीर पुनि करुण अति उत्तर - चरित निचोर
कवि विभूति भवभूति जे सुम - मृदु बज्र - कठोर॥30॥
अवज्ञात रहितहुँ यदपि सब तरि ज्ञात प्रमान
नहि समानधर्मी भेला भवभूतिक क्यौ आन॥31॥

23. विशाखदत्त - मुद्रा अंकित राक्षसहिँ स्वयं विशाख अलच्छ
रचना अद्भुत तदपि अछि, नाटक विकटहु स्वच्छ॥32॥

24. सुबन्धु - कर-गत बदर प्रमाण अछि विश्व जनिक दृग लब्ध
गद्य - निबन्ध सुबन्धु कृत अक्षर श्लेष - निबद्ध॥33॥

25. बाणभट्ट - रस उन्मद कादम्बरी हर्ष चरित भरि पात्र
हृदय - हरिणकेँ हनल जे वाण न वाणी मात्र॥34॥

26. श्री हर्षवर्धन - गुण - ग्रहिणी परिषदक निपुण कृती श्रीहर्ष
जनिक ग्रथित रत्नावली बढ़बय उर ऊत्कर्ष॥35॥

27. धावक - धावक हरइछ दोष - मल गुण - पट करइछ स्वच्छ
धन - कन हित, पुनि सधन जन चमकय जग परतच्छ॥36॥

28. मुरारि - राघव बनथि अनर्घ पुनि स्वयं महार्घ मुरारि
कविता वनिता मृदु कठिन वैयाकरण निहारि॥37॥

29. अमरुक - अमरुक मरु नहि जनिक उर भरि कविता रस राशि
श्लोक कूप मे भरल जनि शत शत कविता भासि॥38॥

30. शंकराचार्य - वेद विदित शंकर, उमा संग रूप रुचि द्वैत
वेदान्ती संन्यास लय की अरूप अद्वैत?39॥

31. मण्डन - स्वतः तथा परतः जनिक आङन कीर प्रमान
ज्ञान - काण्ड केर खण्डनहुँ मण्डन जनि अभिधान॥40॥

32. वाचस्पति - अस्ति जनिक अछि स्वस्तिएँ नास्ति जनीक नकार
वाचस्पति युग विवुध गुरु दर्शन विविध प्रकार॥41॥

33. उदयनाचार्य - पथ वा विपथ क कथा की, पथ जे चलथि महान
प्राच्य ज्ञान गगन क जयतु उदयन भानु प्रमान॥42॥

34. भट्टि कवि - अनध्याय स्वाध्याय जत व्याकृत प्रकृत प्रयोग
उद्भट भट्टि क काव्य गत पाण्डित्य क विनियोग॥43॥

35. श्रीहर्ष - माँ मल्लि कजे मल्ल सुत हीरक खानिक हीर
ग्रन्थ - ग्रन्थि फोलब कठिन श्रीहर्षक गंभीर॥44॥
रति-रस सर मे नित नहा’ आसन बसि, कय ध्यान
नृप अर्पित तांबूल मुख कवि श्रीहर्ष न आन॥45॥

36. नारायण भट्ट - मुक्त - कुन्तला द्रोपदिक कय वेणी - संहार
पार्थ - पक्ष - रक्षक विदित नारायण संसार॥46॥

37. राजशेखर - राजशेखरक कथा की संस्कृत कहथि अनारि
बागहि मजरि कपूर जे बरलनि प्राकृत नारि॥47॥

38. कल्हण - स्वयंवरा कवि - रगिनी वीर वरणमे वृत्त
राजतरगिणि तरंगित कवि कल्हण इतिवृत्त॥48॥

39. श्री जयदेव - जनिक पदावलि उपवनहि रसमय कलय समीर
राधा - माधव केलि श्रम हरय तरणिजा - तीर॥49॥
दाख मधुर, धनि - अधर मधु रहौ अमृत बढ़ि मीठ
कवि जयदेव क रुचिर रस चाखि सभ क रस सीठ॥50॥

40. गोवर्धनाचार्य - गोवर्धन गिरि नख चढ़ल गोवर्धन कवि टीक
आर्या सप्तशती जनिक भार्या सप्तपदीक॥51॥

41. पक्षधर - तर्क - कर्कशहु पक्षधर रस - पीयूष प्रसन्न
अनलंकृत जे नहि कृती तनि पद के न प्रपन्न॥52॥

42. महेशठक्कुर - ‘वदन भयान भवानि’ पुनि रमा भारती संग
श्रुतिधर लक्ष्मीपति सकल सफल महेश प्रसंग॥53॥

43. शंकरमिश्र - सरस्वती युवती कोना बालक शंकर संग?
उत्तर देल स्वयं बरे गौरि - दिगंबर अंग॥54॥

44. भानुनाथ - रस - तरंगिणीमे जनिक रस - मंजरी फुलाय
भानुनाथ निशिमे कोना अभिसारिका - सहाय?॥55॥

45. पण्डितराज (जगन्नाथ ओ गोकुलनाथ)
गंगाधर गंगा लहरि विहरथु पंडितराज
मनोरमा मर्दथि विलसि भामिनि उचित कि काज?॥56॥
अमृतोदय कादम्बिनी बरिसथि गोकुल नाथ
श्रुति स्मृति दर्शन रस-वचन गोचर सकल सनाथ॥57॥

46. तुलसी - जगतक जे जत रतन मनि नहि से तुलसिक तोल
सुरसरि सम हितवह सभक मानस जनिक अमोल॥58॥

47. सूर - सूर अंध रहितहुँ छला सूर क प्रतिभालोक
लक्ष गीत गत लक्ष्य हो जनिक दृष्टि नहि रोक॥59॥

48. कबीर - घर जारत के उकाठी हाथ लुकाठी सग
कबिरा कवि क बजारमे हीरा अद्भुत रग॥60॥

49. मीरा - मीरा मुरली गिरिधरक युग युग ध्वनित दिगन्त
भक्त रसिक उर - कुंज नित फुटइत प्रेम वसंत॥61॥

50. बिहारी - सरस बिहारी सतसई रचल रुचिर रस धार
डूबि जतय ऊगथि सुकवि शृंगार क मझधार॥62॥

51. देव - व्रज चंद क मंगल पदक बुध कवि गुरु पद पाबि
देव क्रमहि पद बल वनल नव उन्नत पद भावि॥63॥

52. मतिराम - श्यामा श्यामक रति सुरति रस चित सुमिरि सकाम
धनि धनि पाओल सुकवि यश अंतहु पुनि मति राम॥64॥

53. केशव - केशव सेवन कठिन अछि केश वेश रुचि रंग
नव-पुरान मृदु - कठिन पुनि तपन-चन्द्रिका संग॥65॥

54. घनानन्द - यदि सुजान चित चढ़य तँ कविता घन आनन्द
कय प्रदान नित विरह रस सरिता बहय अनन्त॥66॥

55. भूषण - रस रीति क मधु मद अलस हत - चेतन म्रियमान
जगा देल रन भूख पुनि भूषन ओजस प्रान॥67॥

56. पùाकर - व्रजबानी सरसी सजल अलि धुनि छन्द मरन्द
सुवरन सुरभित रस बरस पùाकर पद - बन्ध॥68॥

57. अष्टछाप एवं अन्य कविगण -
वृंदावन रजकन बिछथि नन्ददास मनि मानि
अष्ट छाप कवि - गनक के छाप न उर धर आनि॥69॥
रस विन्दक कवि ‘वृंद’ छथि रहम ‘रहीम’क काज
रहथु उदास न ‘दास’ हरि राखु ‘भिखारि’क लाज॥70॥

दक्षिणक कवि

58. आलवार
- दच्छिन पवन प्रमान बहि आलवार कवि उक्ति
सेतु हिमाचल धरि रचल मधु ऋतु भक्ति क युक्ति॥71॥

59. ज्ञानदेव - चंदन सन सुरभित हृदय ज्ञान देव कवि संत
सरस परस वस सुकवि तरु सुरभित, भरित दिगंत॥72॥

60. समर्थ राम - बोध दासकेँ दय सकथि स्वामी सैह समर्थ
सत शिव हित प्रिय साधना तनिकहि उक्ति सदर्थ॥73॥

61. गुरु नानक - गुरु गभीर बानी विनय नानक देल सिखाय
जे सिखि सिक्ख क दल बनल सिंहक शक्ति निकाय॥74॥

62. गालिब - इसखी गालिब जे गजल आतिश देल जराय
आगि इश्क केर मिझौनहुँ जे किन्नहु न मिझाय॥75॥

63. इकबाल - के एकबाली प्रौढ़ कवि इकबालक सन भेल
बुलबुल हिन्द क बनि गुलिस्ता बुलन्द कय गेल॥76॥

बंगला

64. चंडीदास
- जनिक जीवन क पट मलिन रजकि प्रेम जल शुद्ध
राधा माधव रुचि रङल टङल चण्डि चित मुग्ध॥77॥

65. चैतन्यदेव - तरु सम सहि तृण नम्र रहि गहि माधव पद-कज
प्रेम मूर्ति गौरांग प्रभु आ - राधित पद - पंुज॥78॥

66, 67 रूप-जीव गोस्वामी -
मणि नीलम उज्ज्वल कोना रसायनक की खेल
जीव रूप गोस्वामि पुनि गोकुल अनुचर भेल॥79॥

68. ब्रजवुलिक कविगण -
मिथिले छल ब्रज धाम की व्रज - बुलि मैथिलि वानि
राधा माधव केलि रस गौलहुँ मन अगुमानि॥80॥
बुललहुँ व्रज, बजलहुँ न ब्रजवानी, पुनि व्रज-गीत
गौलहुँ विद्यापतिक पद - धुनि सुनि मैथिलि रीत॥81॥
व्रजबुली क कवि गन उदित रास गीत कत रास
शंकर रामानन्द जत घोष दत्त बसु दास॥82॥

69. वंकिमचन्द्र - वंकिम चन्द्र क ज्योति शुचि द्योतित भारत भव्य
मठ बसि ‘वन्दे मातरम्’ मन्त्रक द्रष्टा नव्य॥83॥

70. रवीन्द्र
- भानु विभा शशि माधुरो सत रंजित धनु इन्द्र
एकत प्रतिभा कला जत विश्वकवीन्द्र रवीन्द्र॥84॥
उदित रवि क प्रतिभा प्रभा साहित नभ झलकैछ
जनिक किरन कन परसि ससि ग्रहगन भासित ह्वैछ॥85॥

मैथिली
71. सिद्ध-गण
- सन्ध्या वाती, साधना राति विरति रति मादि
जनिक आगमालोकमे लोक - भाषित क आदि॥86॥
चुप्पा सिद्धप्पा गमहि लोक तन्त्र मत आनि
अपभ्रष्ट चर्या चटुल दोहा गान बखानि॥87॥

72. डाक - डाकनि जनिक सुनैत जग भूत अकाल विलाय
काल परेखथि दैवविद् डाकक बचन सुनाय॥88॥

73. ज्योतिरीश्वर - कविशेखर निज कृति - कलश रत्नाकर भरि देल
गद्य वर्णना पद्यसँ अद्यावधि बढ़ि गेल॥89॥
दधि चूडत्रा परसथि जनिक काव्य किशोरी थार
संगीतागम - नागरक गद्य भोज विस्तार॥90॥

74. विद्यापति
- विद्यापति रूपेँ बरलि पुरुष परीक्षित जानि
कुहकथु कोकिल लोक - वन मैथिलीक मधु बानि॥91॥
लखिमा लक्ष्मी कांचनी रूप नरायन शम
विद्यापति - पद भागवत मिथिला वृन्दा - धाम॥92॥
नव धनि, नव धुनि नव बयस नव ऋतु, नवल किशोर
नव रसाल कोकिलक धुनि के नहि भाव - विभोर?॥93॥

75. अमृतकर - अमित पदावलि अमृत रस हरषि वरषि कत रास
मृतहु अमृतकर नित उदित मैथिलीक आकाश॥94॥

76. विष्णुपुरी - विष्णुपुरी मणि उपजला यदपि तिरहुतिक माटि
गढ़ि रत्नावलि गौर - गर रहल बंग धरि बाँटि॥95॥

77. कंसनारायण - कंस संग नारायणक यदपि सदैव विरोध
सम्बन्धक वल सन्धि पुनि मैथिलीक अनुरोध॥96॥

78. गोविन्ददास - गीतामृत गोविन्द मुख श्रुति - सुख ककर न दैछ
द्वैत मिलित अद्वैत रस पद पद हृदय हरैछ॥97॥
गोविन्दक पद ध्यानसँ दास स्वयं गोविन्द
ध्याता ध्येय क भेद नहि यदि च समाधि अमन्द॥98॥

79. रामदास - विजयानन्दहि मस्त जे नट बनि नाच देखाय
कृष्ण क कयलनि चाकरी रामक दास कहाय॥99॥

80. उमापति - यवन वनक छेदन चतुर हिन्दूपति बल देल
सुमति उमापति वचन बल पारिजात हरि लेल॥100॥

81. लोचन - साहित ओ संगीत दुइ दृग भारतिक प्रसिद्ध
राग तरंगित छवि निरखि लोचन कयलनि सिद्ध॥101॥

82. मनबोध - मनबोधेँ मन बोध हो मिथिलहि कृष्णक जन्म
वृन्दावन तिरहुतहि मे रसक सù निश्छù॥102॥

83. रत्नपाणि - रत्न जनिक छल पाणि गत विद्या दश दिश ख्यात
तनिक पदक करइत स्मरण के नहि पुलकित गात॥103॥

84. संत साहेबराम ओ लक्ष्मीनाथ -
मैथिलीक मठ बसि पुजल पद अभिमत नत-माथ
साहेब राम सुनाम पुनि लक्ष्मीनाथ सनाथ॥104॥

85. अन्य कविगण - कमला वागवतीक तट विचरित शत शत गीत
परिणय - हरण स्वयंवरक कथा - बहुल रस - रीत॥105॥
कते उषा गेली हरलि गोरी परिणय कानि
रुक्मिणि हरि बोधथि कतहु पारिजात हरि आनि॥106॥
बादरि वरसथि रस, प्रभा भानुक सगर इजोर
निधि ल ग नी के लाल मणि रत्नक कयल सङोर॥107॥

86. चन्दा झा - कतबहु कवि खद्योत गण चमकथु भाषाकाश
किन्तु चन्द्र बिनु कतहु कहुँ होइछ दिसा प्रकाश?॥108॥

87. हर्षनाथ झा - जे मयक बसि गगन धसि शशिकर जाल पसारि
बझबथि उडु - गन मीन नित हर्षनाथ अवधारि॥109॥

88. लालदास - रमा रहित रामक अयन नहि अशक्ति पुरुषत्व
लाल दास रचि ‘रमेश्वर-चरित’ बुझाओल तत्त्व॥110॥

89. जीवन झा - संस्कृत प्राकृत अनुपदे मैथिलीक पद दोग
साम्ब नर्मदेश्वर पुजल जीवन सुन्दर योग॥111॥

90. परमेश्वर झा - तत्त्व विमर्श करैत नित परमेश्वर पद योग
व्याकरणक सीमान्तमे सीमन्तिनिक प्रयोग॥112॥

91. मुरलीधर झा - मुरलीधर मुरलीक धुनि बजबथि मोद निमित्त
पक्षच्छेदी बज्रिहुक व्यंग्ये बेधल चित्त॥113॥

परिशिष्ट
(दिवंगत साहित्यिक एवं उन्नायकक स्मृति-अर्चा)

मिथिला - मैथिल - मैथिली, संस्कृत - संस्कृति देश
उद्योतित कय अस्त रवि ‘कामेश्वर मिथिलेश’॥1॥
आ-हिम आ-सागर जनिक सुकृत प्रवाह बहैछ
स्वर्गत ‘गंगानाथ’ पद माथ न के झुकबैछ?॥2॥
मैथिलीक हरणेँ विकल ‘रघुनन्दनो’ बताह!
स्वयं सुभद्रा हरण कय बदला लय उठलाह!!3॥
दीना नहि भाषा जकर दीन बनथि दिन दोष
‘दीनबन्धु’ द्योतित कयल रत्न धातु भरि कोष॥4॥
मिथिलाभाषामय स्वयं इतिहासज्ञ ‘मुकुन्द’
‘बालकृष्ण’ दर्शन क हित के नहि श्रद्धावन्त?॥5॥
मरितहुँ ‘अमर’ क ‘नाथ’ जे छथि प्रत्यक्ष परोक्ष
भव - विभूति - भूषित जयतु मैथिल पुरुष - महोक्ष॥6॥
जयतु जैत केर आभरण व्रज माथुर श्री ‘चन्द्र’
‘यदुवर’ पदकेँ सुनि ककर धन्य न हो श्रुतिरंघ्र?॥7॥
‘कपिलेश्वर’ दर्शन कयल पाओल ‘योगानन्द’
‘कन्त विष्णु’ ‘जगदीश’ पद मिथिला मिहिर अनन्द॥8॥
‘त्रिलोचन’ क लोचन अरुन मैथिलीक जत रोध
गोरीनाथक माथ भल गंगा दर्शन बोध॥9॥
‘जन सीदन’ नामेँ स्वयं सीदित साहित लेल
‘कुमर कुशेश्वर’ अमर छथि मरि माँ मैथिली लेल॥10॥
नित सुनीति सुकुमार मति करइत रीति अभिज्ञ
रचि रत्नाकर भूमिकेँ ‘बबुआजी’ दैवज्ञ॥11॥
पद प्रफुल्ल ‘श्रीवल्लभ’क ‘वीर’क ओजस छन्द
‘श्यामानन्द’क कवित रस-बन्ध मधुक निःस्यन्द॥12॥
साहित सर ‘श्रीकर’ कलित ललित ‘सरोज’ विकास
स्मृतिपथ ‘पुलकित’ ककर मन आजहु हो न उदास॥13॥
वैशाली - मठ मे रमल ‘भुवन’ विभूति लगाय
आषाढ़हु व्रज- विरहिणी तपइछ नोर नहाय॥14॥
‘दत्तबन्धु’ की देल नहि आनन्दक उपहार
लघु रघु पुनि भारत महा अच्युत परम उदार॥15॥
मैथिल विद्वद्वृंद केँ करइत हत! अनाथ
भेल दिवंगत विदित बुध-बन्द्य ‘त्रिलोक क नाथ’॥16॥
पण्डित मण्डित जनिक बल, मिथिला बलित विशेष
सत्कृत संस्कृत ‘मिश्र बल-देव’ हन्त स्मृति-शेष॥17॥
कलित ललित संगीत रस रूपक रचि रसकूप
सरस ईश’ कवि छथि अहह! स्मृति-पथ पथिक अनूप॥18॥
‘उमानाथ’ कृतकृत्य जग सेवल काशी अन्त
नव प्रतिभाधर नखत ‘ हरि - नाथ’ अस्तमित हन्त॥19॥
वाचस्पति ‘काली’क बनि ‘दास’ ‘कुमार’ अनंत
मैथिलीक रक्षण निरत ‘धनुष धारि’ ‘गुनवंत’॥20॥
भाषा ‘भेष’हुसँ विदित व्यवहारक विज्ञान
मृतहु अमृत पद तिरहुतहु काशी नाथ’ प्रमान॥21॥
ऋतु वसंत बहु रूप धय प्रकटित जनिक प्रसाद
‘रामनिरेषण’ सुकवि केँ सुमिरी सहित विषाद॥22॥
तुलसी दल, ठाकुर क पद भजइत भक्ति विधान
‘राजेश्वर’ सुरलोक केँ कयल स्वदेश निदान॥23॥
चरित चान चाणक्य केर छापत के पुनि आब
‘बन्धु’ दिवंगत यदपि छथि छपल न रहत प्रभाव॥24॥

अवशिष्ट
(वर्तमानकालीन साहित्यसेवी एवं उन्नेताक प्रासंगिक नाम-चर्चा)

शान्ति संग अनुशासनेँ गंगानन्द कुमार
श्रीगिरीन्द्र मोहन सहित खोंलथु मैथिली-द्वार॥1॥
न्याय तर्क सम्मत जनिक कृति संस्कृतिक नितान्त
बसबथु काली दास केँ मिथिला लक्ष्मीकान्त॥2॥
कला चन्द्रशेखर शिवक छापल विश्व उदार
आदित्यक उद्योतकर किरन गगन विस्तार॥3॥
सत्यमेव जयते विदित भारत भव्य प्रतीक
वैदेही - प्रिय सत्य से नारायण न अलीक॥4॥
नव स्वतन्त्रणा मन्त्रणा जन - जागरण विधान
श्री हरिनाथक कल्पना पूरओ परिषद प्रान॥5॥
चन्द्रधारि गौरव - मुकुट विद्या कला प्रसंग
साहित हित परिषद् विशद कृष्णनन्दनक संग॥6॥
कांत कृष्ण जब वियय युत, सुधा प्रभामय रम्य
श्री उमेश नित मैथिलिक चिर-हित-निरत प्रणम्य॥7॥
पद गंगा मिथिला मिलित लोकज्ञहु दैवज्ञ
सीतारामक पद-अमृत पिबि के कवि न कृतज्ञ?॥8॥
ध्वनि-रस-रीति-अलंकृतिक करइत निपुण निवेश
मातृगिरा गौरव जयतु कविशेखर सविशेष॥9॥
गीतामृत पद भागवत लोक - गीत अभिनन्द्य
शत शत हरि-यशकथा-रस भुवनेशक पद वन्द्य॥10॥
दुर्गा-लहरी उच्छलित रचि कत बध-निबंध
दुखमोचन शशिगर सगर कयल वाग अनुबध॥11॥
मातृगिरा केर लाल छथि भोलाला अमोल
शरण राम लोचन वचन मधुरस मानस घोल॥12॥
शिवशकर नागेश्वरक शुचिरुचि हिमकर माथ
बनल सबल बलदेब श्रीकृष्ण संग शशिनाथ॥13॥
रक्षक मुद्रित राक्षसो चानक नीतिक जीति
कुसुम प्रेम पुर नगर भरि सुधाकरक यश गीति॥14॥
कन्या-दान द्विरागमन घर - घर देव प्रणम्य
गप तरंग जनि’ बल चलल हरि मोहन रस रम्य॥15॥
गद्य-बंध अनवद्य जनि’ रमानाथ बुध धन्य
कोमल कांत पदावली जयदेवहि क अनन्य॥16॥
जतय किरण अरुनित दिशा, मधुप सुगु’जित देश
यात्री नव पथ पर चलथि निज भाषा निज वेश॥17॥
मैथिलीक पद सेवनेँ बनइछ जीव सनाथ
जगन्नाथ रथ पथ गहथि जन जे भक्ति सनाथ॥18॥
लोक-तन्त्र आलोक मे कीचक नीचक अंत
हो सुभद्र आनन्दमय जीव जीबु जयमत॥19॥
नारायण लक्ष्मी सहित लक्ष्मण लक्षित प्रांत
करथु सदर्थ समर्थ बनि मिथिला परमाकांत॥20॥
लक्ष्मीपति रहितहुँ गहल सरस्वतिक सद्भाव
गंगापति भजि लोक कत लोकपति क पद पाव॥21॥
मल्लिक जय नारायणक पद - मल्लिका अमंद
छन्द बिन्दु मकरन्द पिबि परमानन्द मिलिन्द॥22॥
कर आकर जनिकर रमा प्रभा बुद्धि जय धारि
वीर भद्र विधु विधुर भव-नाथ लेख अवधारि॥23॥
छथि मोहन मोहन जगक ब्रजक किशोर कुमार
व्यास समासहु उक्त अछि बेचन वचन उदार॥24॥
भलमानुस छथि वैह जे पाबथि योगानन्द
जे केदारहु रस निरत से पुनि मायानन्द॥25॥
निरखि आरसी मे सरस कविता स्वमुख निहारि
लखि मानस अणिमा सरस दैछ प्रबोध पसारि॥26॥
कला कलित कृति अमर नब चन्द्र नाथ मन मानि
विकसित कैरव विमल दल रस-मधुकर रुचि आनिं।27॥
साहित परिसर मे रमथु उन्नतशिर शैलेन्द्र
नित विपक्ष छेदी बनथु युग-युग युगल उपेन्द्र॥28॥
कान्त रमा रमणक रुचिर प्रतिभा प्रभा नवीन
तरुण अरुण दिनमणि विभा राजकमल रुचिलीन॥29॥
मानक गिरि शेखर चढ़थु आणु निर्माणक रेणु
मैथिलीक नन्दन विपिन विहरथु हरि लय वेणु॥30॥
राधाकृष्णक मधुर - पद श्रीश सरस गोविन्द
अरविन्दे स्वर-मुखर भम भ्रमर विनोदानन्द॥31॥
माथुर रहि गोकुलहु जे साकेतहु वैदेह
रामकृष्ण पद आत्मने हित नित करिअ सिनेह॥32॥
छथि हित नारायण जतय विदित उमेश अमद
रसा सहरसा प्रभावेँ प्रौढ़हु बाल गोविंद॥33॥
शशि प्रबोध रहितहुँ मिहिर करइछ नभ श्रीमंत
धरि ईश्वर पर धीर चित्त रामदेव पद अंत॥34॥
कंटक धरि जत सुमन सम निरंकुशहु सु विनीत
धूमकेतु धरि सौन्यमय देव, तिरहुतिक रीति॥35॥
इंदु विभाकर अछैतहुँ नहि दीपक छवि न्यून
तारा नित्य प्रकाशमय राकेशहु दिन दून॥36॥
करथि नृसिंह न उर दलित, प्रवासिहुक घर वास
राज हंसराजक ललित मधु गुंजनक विकास॥37॥
नरे नरेन्द्रक पद चढ़ल, गोपाले गोपेश
कले कलेशक नित हरय तम कुलेश कमलेश॥38॥
राघव नहि लाघव भजथि, विषपायी अमरेश
प्रलयकरहु शुभंकरे दीनहु पुनि परमेश॥39॥
अमर तेज फणि नाथ मणि नागेन्द्रक रचि हार
प्रेम सहित शकर पहिरि लेल महेश उदार॥40॥
रामचन्द्र नारायणक रूप अनूप प्रशान्त
परमेश्वर अवतर मही लक्ष्मीकांत नितान्त॥41॥
कथा-कवित-स्वरगति त्रिगुण कुमर नगेन्द्रक योग
अनिल अनल बम भीम पुनि जल ईश्वर संयोग॥42॥
वेर कुबेरहु उमापति मित्र, बरस रस इन्द्र
नभ पट भूषण उदित रवि, रम्य प्रकाश रमेन्द्र॥43॥
मैथिलीक पद कन कनक गिरिजा हीरा नन्द
शंकर कृपा सनाथ भय लोक-वेद सानन्द॥44॥
जे जत छथि सभ नवल कवि कोमल कला कुमार
आइ अकिंचन जनिनि केर अंचल भरथु उदार॥45॥
शान्ति उषा आशा प्रभा लखिमा लक्ष्मी नारि
मैथिलि गौरी भारती जत जे कला कुमारि॥46॥
मातृगिरा उत्कर्ष हित श्रम नित करथु सहर्ष
मेटि अलस अपकर्ष पुनि थापथु नव उत्कर्ष॥47॥
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दु्रम बल्ली पुर ग्राम वन भुवन सुमन निःस्यन्द
वागवती तट कर्ममय जय ब्रज रज स्वच्छन्द॥1॥
पूजि मातृका गोसाउनि जननि, जनक भुवनेश
रामेश्वर गुरु तेज युत नारायण स्मृति शेष॥2॥
जय गुरु बदरी देव सह करइत सुचित प्रनाम
दुखमोचन जपि नित कहिअ राघव यादव नाम॥3॥
कान्त-बन्धु स्मृति गत विगत लक्ष्मी राम प्रसंग
अंग अंग छवि कवि सुहृद यदपि कतोक अनंग॥4॥
जय किशोर श्रीकृष्ण जय देव कान्त लक्ष्मीक
रामचन्द्र मोहन मधुप अमर समर निर्भीक॥5॥
नित चित नाम स्वरूप गुण सुमिरि सुरेन्द्र अभिन्न
सुहृद सुहृद गन मन सुमन कहिअत भिन्न न भिन्न॥6॥
रामनन्दनक प्रीति रत, मत भोला अनिरुद्ध
मातृभूमि प्रति भक्ति हित भाव बढ़ओ अविरुद्ध॥7॥
वृद्ध बुद्धि, युव वीरता, शिशु संस्कार प्रधान
अनुशासित नित संघटित करथु विश्व-कल्याण॥8॥
देव - भूप अनुगत सतत देव - देवकी संग
नित अर्पित सुमनक सुरभि कवि पूजनक प्रसंग॥9॥