कवि ने देखा
भीड़ वाली सड़क पर
बीचोंबीच गिरा पड़ा
एक अभावग्रस्त बीमार आदमी
और उससे नज़रें चुराते
कन्नी काटते गुज़र जाते लोग
और कवि ने लिखी कविता!
कवि ने देखा
वर्दीवालों से सरेआम पिटता
और अपने निर्दोष होने की
सफ़ाई देने की कोशिश करता
एक शख़्स
और कवि ने लिखी कविता!
कवि ने देखे
झगड़े-झंझट
दंगे-फसाद
लूटमार
अँधेरगर्दी और अनाचार...
और लिख डाली कितनी ही कविताएँ !
धन्य है कवि की कविताई
जो दिनोंदिन निखरती चली गई
धन्य है कवि का यश
जो चहुँओर फैलता चला गया
कवि ने
कवि होने का फ़र्ज़ निभाया
बाक़ी को
मनुष्य होने का धर्म निभाना था!