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कसमसाती बँधी नौका / नंदकिशोर आचार्य


एक सूना घाट
नौका बँधी है
दूर तक फैली हुई लहरें
उमगती बुलाती हैं उसे
बँधी नौका कसमसाती है।

कभी कोई था
उस पार से इस पार जो आया
-एक अर्सा हुआ-लौटा नहीं है।
कहीं जा कर बस गया होगा।

अब कौन जानेगा
उस नाव की पीड़ा
फिर से काठ होकर
रह गयी है जो
एक सूना घाट ही
जिस की नियति है।

(1980)