बैल बुलाको के मरलोॅ छै, ऐलै लैल चार कसाय।
टांगी-टूँगी लानल छै या लानलेॅ छ केन्हैं घिसियाय॥
खाल उतारी लेलकै ओकरोॅ, साथे साथ खिंचलकै मांस।
अँतड़ी-भोंटी दूहीं केॅ चारहू मरदें लेलेॅ छै सांस।
खाल खिचीं-अँतड़ी दूहै के बात पुरानोॅ छै धधा।
हम्में देखी रहल छी पच्चास बरस सें ई धंधा॥
जनता केॅ दूहै छेॅ जेना अफसर साही बनी कराल।
खाल-बाल तक लूटी केॅ कंगाल बनाबै छै तत्काल॥
मुरदा छै बेबस, बोन्है पड़लोॅ के छै ओकरोॅ गरिब नेवाज?
मनमाना गिद्ध रं ओकरा सभ्भै लूटो रहलोॅ छै।
राजतंत्र या लोकतंत्र में कोय फरक नैं पडलोॅ छै॥