कहकर बताता
या लिखकर
या करके स्पर्श
लगता है भूल हुई मेरे समझने में,
यह तो नहीं चाहा था कहना
अन्त में सभा के जब काग़ज़ ले हाथ में जाते हैं लोग तब
लगता है, कहूँ मैं पुकारकर :
आइए, सकूँगा कह
मैं अबकी बार।
मूल बंगला से अनुवाद : अरुण माहेश्वरी