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कहाँ गए सब ज्ञानी / अवनीश त्रिपाठी

चन्दन घिसते
तुलसी बाबा
औ कबीर की बानी,
राम रहीम
सभी आतुर हैं
कहाँ गए सब ज्ञानी ?

रामचरित की
कथा पुरानी
काट रही है कन्नी,
साखी-शबद
रमैनी की भी
कीमत हुई अठन्नी।

तीसमार खाँ
मंचों पर अब
अपना तीर चलाएं,
कथ्य भाव की
हिम्मत छूटी
याद आ गई नानी।।

आज तलक
साहित्य जिन्होंने
कभी नहीं है देखा,
उनके हाथों
पर उगती अब
कविताओं की रेखा।

फैज़ और
मज़रूह साथ ही
ग़ालिब, केशव, दिनकर,
इनसे कम
ये नहीं मानते
शिल्प भर रहा पानी।।

मात्रापतन
आदि दोषों के
साहित्यिक कायल हैं,
इनके नव
प्रयोग से सहमीं
कविताएं घायल हैं।।

गले फाड़ना
फूहड़ बातें
और बुराई करना,
इन सब रोगों
से पीड़ित हैं
नहीं दूसरा सानी।।