कहाँ गया वह गाँव / संजय पंकज

कहाँ गया वह गाँव?
छोटे-छोटे ताल तलैये
छोटी छोटी नाव?

फूस पात के घर थे तो क्या?
भूत प्रेत के डर थे तो क्या?
आफत में सब मिलजुल करते
विफल किसी के दाँव!

निर्धन भी लोग सयाने थे
सब ही जाने पहचाने थे,
पचपन के कंधे पर बचपन
रखता डगमग पाँव!

छोटे हाथ बड़े कंधों पर
छोटे-छोटे संदर्भों पर,
छोटे-छोटे घर में होते
ऊँचे-ऊँचे भाव!

छल छद्मों के रोग नहीं थे
छोटे ओछे लोग नहीं थे,
नहीं प्रपंची पेड़ वहाँ थे
नहीं छली थी छाँव!

धड़कन धड़कन में रमती थी
दादा-पोते में जमती थी,
सुबह पराँती शाम विरागी
तापे सभी अलाव!

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