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कहाँ दस्तक दूँ / अमृता भारती

कहाँ दस्तक दूँ
तुम्हारे
या इस दुनिया के द्वार तक ?

सब जगह ताले हैं
बन्द दरवाज़ों के अन्दर

और तुम
इस तरह खुले हो
कि दस्तक को कोई पट नहीं मिल रहा --

मैं भी बार-बार लौट आती हूँ
अन्दर से बन्द
अपने ताले में ।

कहाँ दस्तक दूँ

दस्तक को
कोई द्वार नहीं मिल रहा
तुम्हारे आकाश में ।