Last modified on 30 सितम्बर 2019, at 00:09

कहाँ हमारा गाँव हैं / अलका वर्मा

ना सुहानी शामहै
ना पीपल की छाँवहै
 कहाँ हमारा गाँव है।
ना लगती चौपाडी
ना घूरा ना ठाँव है
 कहाँ हमारा गाँव है।
ना लगती हटिया
ना मेला की चाव है
 कहाँ हमारा गाँव है।
ना कोयल से सूर मिलता
ना कौआ की काँव-काँव है
 कहाँ हमारा गाँव है।
ना बरसा में नहाते
ना चलाते कागज की नाव है।
 कहाँ हमारा।गाँव हैं।
ना पर्व की चहलपहल
ना भोज भात की चाव है।
 कहाँ हमारा गाँव है।
अपनो से मिलने जो जाते
नहीं मिलता कोई भाव है।
 कहाँ हमारा गाँव है।