कहाँ गई वे मेरी कविताएँ
क़िताबों के पन्नों में दबा
दी गई थीं जो मेरी कविताएँ
जो छपने वाली थीं क़िताबों में
जिनके लिए सन्तापों की गठरी
सिर पर धरे भागता रहा
इस नगर से उस नगर तक
जिनके लिए हाथियों के पैरों तले
कुचला जाता रहा हूँ चींटियों जैसा
जिनके लिए मधुमक्खियों को छत्तों में
पकता रहा हूँ शहद जैसा
दुबारा कैसे मिलेंगी कविताएँ
खो गईं मेरी कविताएँ
दूसरे लोग जब लिखेंगे मेरी कविताएँ
तभी मिलेंगी खोई मेरी कविताएँ