कहाँ हैं वे लोग
जो सम्भाषिका में जोश से
बोला किए परसाल
और उनके बोल से जो छाँह
छा गई थी
सोचते थे तुम दुलारे,
ताप के दिन गए
हाथ जितने हैं
आड़ करते रहेंगे
कहाँ हैं वे लोग
जो सहयोग झोलों में सम्भाले
यहाँ आए थे ।
कहाँ हैं वे लोग
जो सम्भाषिका में जोश से
बोला किए परसाल
और उनके बोल से जो छाँह
छा गई थी
सोचते थे तुम दुलारे,
ताप के दिन गए
हाथ जितने हैं
आड़ करते रहेंगे
कहाँ हैं वे लोग
जो सहयोग झोलों में सम्भाले
यहाँ आए थे ।