रिस-रिस कर
बूँद-बूँद झरता है
गुफा की छत में से जल।
अभिषिक्त ही नहीं
प्रतिमा
उस से ही उभरी है
झर-झर कर।
कहाँ है देवता ?
उस छत में जिस में वह रिसता है ?
उस मूरत में जिस पर वह झरता है ?
या उस जल में
जिस ने उस को मूरत भी किया
तरल भी ?
(1976)