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कहाँ हो सुदर्शन चक्रधारी / विनय सिद्धार्थ

उन्होंने मासूमों की ज़िन्दगी बेकार कर डाला।
उन निर्दोषों पर चाकुओं से वार कर डाला।

गिरे इतना गिरे वह कि हम सोच न पाए,
कि उन्होंने दरिंदगी की हद को भी पार कर डाला।

न मिलती शान्ति पृथ्वी पर चाहे जिधर जाओ।
कहाँ हो सुदर्शन चक्रधारी पृथ्वी पर उतर आओ।

टिप्पणी कर-कर मजा वह नीच लेते हैं।
सभी यह देख करके भी आँखे मीच लेते हैं।

इन लोगों ने शरीफों का जीना दुष्वार कर रखा,
चलते हुए सड़कों पर दुपट्टा खींच लेते हैं।

है अधर्म फैला पृथ्वी पर आ करके इसको मिटाओ।
कहाँ हो सुदर्शन चक्रधारी पृथ्वी पर उतर आओ।

था जब एक दु: शासन पृथ्वी पर तब जल्दी चले आये।
अब फैले हैं जो लाखों में तो हो क्यों देर लगाए।

दिन प्रतिदिन यहाँ राक्षस राज बढ़ता है,
कहीं ऐसा न हो भगवन अधर्म का राज छा जाए।

इन सबका नाश कर भगवन सभी की लाज बचाओ।
कहाँ हो सुदर्शन चक्रधारी पृथ्वी पर उतर आओ।