कहीं चहकेले चिरई
कहीं ढोल बाजेला!
ना घरे में लागेला मन
ना बने में लागेला!
जे खुदे नाद से जनमल बा
ओह ब्रह्माण्ड में
कहाँ मिल पाई हमरा
सुनसान ठवर
जहाँ हम उदासी के केंचुल
चढ़ा-चढ़ा के
उपजा सकीं
तलफत जहर!
सोच-सोच
अपने पर हँसी आवेला
ना घरे में लागेला मन
ना बने में लागेला!
इरखा के आँच में
उफनाइल
फेन फेंकत मन के
बैरागी बाना
अझुरा ना सके
रेशम के कीड़ा जइहन
अपने बीनल जाल
काट-काट के
तनिको
सझुरा ना सके!
ना मने में लागेला मन
ना तने में लागेला!
ना घरे में लागेला मन
ना बने में लागेला!