नहीं, तपती रेत ही तू नहीं है केवल
तुझ में कहीं जल है, माँ !
कहीं गहरे जल
सिर्फ मेरे लिए संचित।
यह जल किस तृषा से उपजता है, माँ !
खुद को जला कर भी
सींचती मुझ को-
मैं जो रोहिड़ा ही सही
तेरा पूत हूँ !
(1982)
नहीं, तपती रेत ही तू नहीं है केवल
तुझ में कहीं जल है, माँ !
कहीं गहरे जल
सिर्फ मेरे लिए संचित।
यह जल किस तृषा से उपजता है, माँ !
खुद को जला कर भी
सींचती मुझ को-
मैं जो रोहिड़ा ही सही
तेरा पूत हूँ !
(1982)