परमात्मा से भी अधिक बीहड़
यह सूना अकेलापन
वह भी नहीं सह पाया,
इसे तोड़े बिना होना नहीं है।
किन्तु तुम चुपचाप
अपने में लिए बैठे हो सारा ताप।
फूटो, कहीं तो फूटो
मुझ में
मुझे होने दो, मेरे बाप !
(1982)
परमात्मा से भी अधिक बीहड़
यह सूना अकेलापन
वह भी नहीं सह पाया,
इसे तोड़े बिना होना नहीं है।
किन्तु तुम चुपचाप
अपने में लिए बैठे हो सारा ताप।
फूटो, कहीं तो फूटो
मुझ में
मुझे होने दो, मेरे बाप !
(1982)