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कहो अनन्त हो / सुनीता जैन

तुम दूर-दूर से
कसो,
वाद्य पर तार-सा

कहो
अनन्त हो,
प्राण से प्राण सिक्त होने का
सुयोग

पूछो नहीं,
कब,
कहाँ,
किस रूप में?

बस, रहो!