तुम दूर-दूर से
कसो,
वाद्य पर तार-सा
कहो
अनन्त हो,
प्राण से प्राण सिक्त होने का
सुयोग
पूछो नहीं,
कब,
कहाँ,
किस रूप में?
बस, रहो!
तुम दूर-दूर से
कसो,
वाद्य पर तार-सा
कहो
अनन्त हो,
प्राण से प्राण सिक्त होने का
सुयोग
पूछो नहीं,
कब,
कहाँ,
किस रूप में?
बस, रहो!