न कहीं से
न कहीं को
पुल
न किसी का
न किसी पे
दिल
न कहीं गेह
न कहीं द्वार
सके जो खुल
न कहीं नेह
न नया नीर
पड़े जो ढुल...
यहाँ गर्द-गुबार
न कहीं गाँव
न रूख
न तनिक छाँव
न ठौर
यहाँ धुन्ध
यहाँ ग़ैर सभी
गुमनाम
यहाँ गुमराह
सभी पैर
यहाँ अन्ध
यहाँ-न-कहीं-यहाँ दूर...
कहो राम,
कबीर!
अक्टूबर, 1979