कह रहे हो ओस की बूँदें इन्हें तुम,
मत करो अपमान कह कर यों
किसी के आँसुओं का।
तुम नहीं पहचान पाये हो सखे,
अब तक इन्हें
ये अश्रु हैं आकाश के
जो रात भर रोता रहा,
संसार जब सोता रहा।
जून, 1960
कह रहे हो ओस की बूँदें इन्हें तुम,
मत करो अपमान कह कर यों
किसी के आँसुओं का।
तुम नहीं पहचान पाये हो सखे,
अब तक इन्हें
ये अश्रु हैं आकाश के
जो रात भर रोता रहा,
संसार जब सोता रहा।
जून, 1960