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क़दम / राम नाथ बेख़बर

बहुत दिनों बाद
शाम की सैर पर निकला

और सहसा पाया
धीरे-धीरे
मेरे क़दम
उधर ही बढ़ रहे थे

जिधर से ख़ुशबू भरी हवाएँ
तेज कदमों से चली आ रही थीं।