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क़ातिल जब मसीहा है / शहनाज़ इमरानी

सिर्फ़ लात ही तो मारी है
भूखा ही तो रखना चाहते हैं वो तुम्हें
नादान हो तुम भीख माँगते हो
तुम रोटी की बात करते हो
सरकार के रहनुमा के आगे
जो मुग्ध हैं खुद के आत्मसम्मोहन में

न्याय और अन्याय की जंग में
जहाँ सच को गवाह नहीं मिलता
ख़ुदाओं की इस दुनियां में

तुम्हारे पास है सिर्फ़ दुआ
जो तुम रो कर, चीख़ कर
या हाथ फैला कर करो
कोई भी कुछ नहीं कहेगा