क़िस्सा ख़त्म हुआ जानो
जिसे जाना था वह बिना पूछे, बिना बूझे
चला गया उस पार
मैं ढूँढता रह गया उसे इस पार
उस पार क्या था मुझे नहीं मालूम
इस पार मैं हूँ और मेरे दुःख
उसके बाद आई आँधियाँ
सब कुछ उलट-पुलट देने की ख़ातिर
इस बीच क़िस्मत कहीं नहीं थी
क़िस्मत क़िस्सा शुरू हुआ सिर्फ़ तब
जब उसके इमली खाने की ज़िद की
मैं किसान या हलवाई नहीं था
कि ज़िद पूरी करता
सब कुछ उजाड़, सब कुछ वीरान
असंख्य तारे असंख्य रहें या झरें
मुझे क्या ?
क़िस्सा ख़त्म हुआ जानो
मेरी ओर से
रचनाकाल : 2012