आँगन बँटा
हुए आपस के रिश्ते-नाते दूर
जितने भाई उतने चूल्हे
इस घर का दस्तूर
चौपालों में पले मुक़दमें
पुरखे हैं हैरान
घर-घर को
बीमार हवा ने
किया अज़ब वीरान
अपनी चौखट पकड़े बैठे सब घमंड में चूर
फेर आ गया सबके मन में
धूप हुई चालाक
घुमा-फिरा के पकड़ रहे सब
अपनी-अपनी नाक
बाँच रहे अंधों की पोथी - सूरज हैं मज़बूर
दिन की आँखों में अँधियारे
रातें हैं उजियार
कौन भला देखे सूनापन
दीवारों के पार
बहुत पुराना वैसे है घर - क़िस्सा है मशहूर