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क़िस्सा है मशहूर / कुमार रवींद्र

आँगन बँटा
हुए आपस के रिश्ते-नाते दूर
          जितने भाई उतने चूल्हे
                 इस घर का दस्तूर
 
चौपालों में पले मुक़दमें
पुरखे हैं हैरान
घर-घर को
बीमार हवा ने
किया अज़ब वीरान
 
अपनी चौखट पकड़े बैठे सब घमंड में चूर
 
फेर आ गया सबके मन में
धूप हुई चालाक
घुमा-फिरा के पकड़ रहे सब
अपनी-अपनी नाक
 
बाँच रहे अंधों की पोथी - सूरज हैं मज़बूर
 
दिन की आँखों में अँधियारे
रातें हैं उजियार
कौन भला देखे सूनापन
दीवारों के पार
 
बहुत पुराना वैसे है घर - क़िस्सा है मशहूर