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क़ैद / सुधीर सक्सेना

चिड़िया
तुम्हारी देह में
चहचहा रही थी
सिर से पाँव तक
इन्द्रधनुषी धुनों में

डरा मैं
कि कहीं पंख न उग आएँ
तुम्हारे कन्धों पर
देखते ही देखते
तीलियों से मैंने बुना पिंजड़ा
और क़ैद कर लिया
चहचह चिड़िया को ।