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काँचियो बँसबा कटाबल बाबा / अंगिका लोकगीत

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

काँचियो<ref>कच्चा</ref> बँसबा कटाबल बाबा, पान सेॅ मड़बा छराबल हे।
उरहर<ref>‘पुरहर’ का अनुरणानात्मक प्रयोग</ref> पुरहर<ref>द्वार-कलश; कलश के ऊपर रखा जाने वाला पूर्णपात्र, जिसमें अरबा चावल या जौ भरा जाता है</ref> कलसा बैठाबल, मानिक दियरा जराबल हे॥1॥
चन्नन छेबि छेबि<ref>काट-काटकर; ऊपर-ऊपर से छिलना</ref> पिरहा<ref>पीढ़ा</ref> बनाबल, गजमोती चौका पुराबल हे।
गहुम खेरहिया<ref>डंठल; खढ़; घास; ‘खेढ़ी’ नामक एक अनाज</ref> चढ़ि बैठल जनक रीखी, धिआ लेलन जँघिया लगाय हे॥2॥
आम के पल्लो<ref>पल्लव</ref> चढ़ि बैठल सीरी रामेचंदर, आबे सीता भै गेल हमार हे।
मुँह में रूमाल दै कानथिन जनक रीखी, अबे सीता भै गेलै बिरान हे॥3॥
मुँह में रूमाल लगैने हँसथिन रामेचंदर, आबे सीता भै गेलै हमार हे।
एक कुले<ref>एक वंश की ओर से</ref> बैठलय जनक रीखी, दोसरे कुले पसुराम हे।
माझे ठैयाँ<ref>बीच में</ref> बैठल रामहि लछुमन, अबे सीता भै गेल हमार हे॥4॥
कानी कानी उठल बाबू जनक रीखी, कानी उठल पसुराम हे।
ताल ठोकि उठल रामचंदर लछुमन, आबे सीता भै गेल हमार हे॥5॥

शब्दार्थ
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