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कांई ठा / प्रमोद कुमार शर्मा

ऐक नीं
कई सदया लागी
जद बण्यौ ओ संसार!

संसार!
जिण मांय
हिन्दु-मुस्लमान, सिक्ख-इसाई,
बोद्ध अर जैन .....
(जिण रा नांव री आ सक्या वै छिमा करै)

जाणै कितरा है धरम
कितरा है वां रा रूप
सगळा कैवै
जीवण ऐक वरदान है
अर धरम स्यूं बणयौ है सरूप!

एक दिन
इणी वरदान खातर
लड़ता-झगड़ता लोग
डूबग्या लो‘ई रै तलाब मांय!

अबै आगै कोई सदयां
आवैली के नीं
कांई ठा?