हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
कांटो लागो रे देवरिया मो पै संग चलो न जाय
अपने महल की मैं अलबेली
जोबन खिल रहे फूल चमेली धूप लगे कुम्हलाय
कांटो लागो रे देवरिया मो पै संग चलो न जाय
आधी राह हमें ले आयो
रास्ता छोड़ कुरस्ता ध्यायो
सास नणद तें पूछ न आयो
चलत चलत मेरी पिंडली दुखानी सिगरी देह पिराय
कांटो लागो रे देवरिया मो पै संग चलो न जाय