मैंने जब भी
फ़क्क सफ़ेद कागज़ पर लिखा —
प्रेम !
कागज़ धूसर हो गया
लिखा — दुःख
कागज़ हरिया गया
आदमी तो ठीक
कागज़ का रंग बदलना
मेरी समझ से परे हैं
मैंने जब भी
फ़क्क सफ़ेद कागज़ पर लिखा —
प्रेम !
कागज़ धूसर हो गया
लिखा — दुःख
कागज़ हरिया गया
आदमी तो ठीक
कागज़ का रंग बदलना
मेरी समझ से परे हैं