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कागा / शोभनाथ शुक्ल

का रे कागा
कहाँ रहा तू इतने दिन तक
बैठ रहा मैं इंतजार में तेरे अब तक। कहाँ गया तू
कौन नगरिया
क्या लाया तू
कौन खबरिया...........।
‘.........रे भाई मैं
ठहरा पंक्षी
रमता जोगी
बहता पानी
यहाँ उड़ा, उस डाल पर बैठा
मैं अनशन हड़ताल पर बैठा
घूर पर बैठा, गाल पर बैठा
मैं मस्जिद की छत पर बैठा
राम जानकी रथ पर बैठा
इस तरह टहल-टुहुल कर
दुनिया देखी................
हर नेता की हर मानुष की
नजरें परखी.....।’
 
ओ रे कागा
और सुना कुछ और बता कुछ
किस मुड़ेर पर ,
किसको-किसको पहुँचाया
मेहमानों की सूची
चोंच मार कर
कितनी चीजें जूठी की
तूने अब तक.......।
क्या-क्या देखा,
क्या-क्या परखा,
कहाँ गया तू
कौन नगरिया
क्या लाया तू
कौन खबरिया...............।।
‘.....दिल्ली वाला ठलुआ देखा
हम देखंेगे-देख रहे हैं
चाभी वाला-बबुआ देखा
तेरह मनई गार रहे थे
संविधान का नेबुआ देखा
घपला देखा, घलुआ देखा
दंगा और कमीशन देख ।
संपादक की मेज पर मैंने
तरह-तरह का हलुआ देखा
लाल किले से फर-फर उड़ती
कविता देखी
गिट-पिट, गिट-पिट
खिट-पिट, खिट-पिट
अऊर फिल्म हिट/
इसी तरह हर काम हुआ फिट
टाई और सूट की कविता
आपै बोलौ कौन सुनोगे..........?
ना रे कागा,
कविता-वबिता बाद में पहले
खबर सुना तू, और क्या देखा........?
किसकी पाती/कहाँ ले गया
कहाँ दिया/किसका मन तोड़ा
नन्हंे बच्चे की दूध कटोरी
चम्मच किसके घर छोड़ा।
रे कागा तू
नहीं छोड़ पाया अब तक
क्यों ढ़ीठ और चतुराई..........।
कंकड़ डाल बढ़ाया पानी
खुद की प्यास बुझाई।
मेहनत करती रही गिलहरी
तू खाता चुपड़ी रोटी
हिस्सा छोड़ा नहीं कभी
तेरा घर होता नहीं कभी
बरसा पानी जब
धरी रह गई तेरी चतुराई
और बता/आगे क्या होगा
भूत, भविष्य की बता
वर्तमान में क्या-क्या देखा
ओ रे कागा...
खबर सुना तू क्या-क्या देखा
कुछ भी कह लो
रे मेरे भाई
गया जमाना,बात गई
काम और स्वभाव हमारा
मेरे वश में अब भी है
तभी तेरे/पितरों को तारा
फिर भी आगे
सुन रे भैया...........
’.............इटली वाला चद्दर देखा
करघे पर बलभद्दर देखा
सिंगापुरी तौलिया देखी
प्रगति विश्व मेला में मैने
गाँधी जी का चरखा देखा
किसी विदेशी सूट पर मैंने
पहली बार अगरखा देखा
दर दर ठोकर खाती मैंने
अस्सी की शहवानों देखी
धँू-धूँ करती कँवर को देखा
धरम-करम का चँवर भी देखा
सिक्ख भी देखा,
तमिल भी देखा/मुस्लिम देखा और ईसाई
हिन्दू रोवै भाई-भाई
जो बोले सो पाकिस्तानी
जो न बोले खालिस्तानी/
बाकी सब हैं हिन्दुस्तानी
मीठा-2 गप्प
कड़ुवा-कड़ुवा थू
कभी तोे दुर-दुर
कभी तो आ तू।‘
 का रे कागा
काहे को तू चुप गया
कौन बात तूू छुपा गया
सुन रे कागा
‘सुना बहुत माहौल गरम है
लगता है चुनाव निकट है’
‘........हाँ भैया माहौल गरम है
राजनीति की तौल गरम है
शहर-शहर में रैली देखी
एक अजीब उदासी मैंने
बंजर अरमानों की चादर मैली
हरदम होती मैंने देखी ।
सूखा देखा, रूखा देखा
लाचारी की फसल उगा के
काट रहे राहत की चाँदी
मौत-महोत्सव, सूखा-उत्सव
अल्लम देखा, गल्लम देखा
लोकतंत्र का बल्लम देखा
टी.वी. का अगवाड़ा देखा
संसद का पिछवाड़ा देखा
पूँछ उठाया जिस किसी का
हर कोई को मादा देखा
मीलों लम्बी पगडंडी सी
मंत्री जी का नाड़ा देखा.........।
जूता-चप्पल चलते देखा
वोट की कालीनों पर लड़ते
फ्री स्टाइल कुश्ती देखा
इसे उखाड़ा उसे पछाड़ा
हर ने अपना
झण्डा गाड़ा
संविधान में संशोधन पर
अपनी-अपनी राय पोंकते
नये अधिनियम, नये विधेयक
पर हर किसी को ताल ठांेकते
मैंने सबको बहुत निकट से
अपना काम साधते देखा
मैंने अपने जैसा ही
इन सबकी चतुराई देखा.......।‘
वाह! रे कागा
तू तो अब विद्वान देहातों से लेकर
लेकिन कागा
अरे अभागा
वा तो मैं, सब जान रहा हूँ
पढ़ी-पढ़ाई, सुनी-सुनाई।
कुछ राजा की
कुछ परजा की
पद यात्रा की रपट है आई।
मेरे भाई
आखिर तूने क्या टकटोरा?
अच्छा ये बतला
तूने क्या लोगों की आँखों में झाँका
बोल कहाँ
तूने क्या देखा?
जलती हुई झोपड़ियां देखी
टूट रही हथकड़ियां देखी
नदियां देखी
सूरज देखा
चिटकी धरती
धीरज देखा?
फूट रहा
कोई कल्ला देखा
उबल रहा
कोई सपना देखा ,
राजनीति की वेश्यागिरी में
फँसे हुए की हालत देखी
दिन-दूनी रात-चौगुनी
मरते जन की
हालत देखी...?
तू भी ससुरा
विद्वान हो गया..........
संदेशा कब लायेगा तू
इंतजार की जान हो गया..........।
ले, कुछ खा ले
फिर जा कागा
अबकी आना, हमें सुनाना
नई खबरिया,
हमें दिखाना नईं डगरिया
फिर तू आना
तुझे मिलेगा दूध-भात
खा-खा के फिर उड़ जाना
फिर-फिर आना
हमें सुनाना, नई खबरिया...............
जा रे कागा.... ’
‘......अब कहाँ को जाऊँ
दिल टूटा मन मार के बैठा
इस डाल उड़ा उस डाल पे बैठा
जहाँ तक पहुँची
नजर हमारी
क्या बतलाऊँ क्या-क्या देखा
जिस गोबर के दाने खाकर
काँव-काँव करता हूँ भाई
उसी जगह पर/उसी तरह
भूखे नंगों को मैंने/दाना बीन-बीन कर
खाते देखा ..............।
और कहूँ क्या
क्या हाल बताऊँ
कूड़े बीन रहे बच्चों के
धार-धार रोते देखा....
फिर भी प्यासा
रहा मैं कागा
मन की पीड़ा
बँध कर देखा....

का रे कागा
कहाँ रहा तू इतने दिन तक
बैठ रहा मैं इन्तजार में
तेरे अब तक.......
का रे कागा........।