आज सवेरे खिड़की पर मेरी बोल गया एक कागा
मेरा मन बोला वह देकर सवेर आज आएगी तेरे पास ज़रूर
तू हो जाएगा विरमुक्त, पाएगा छुटकारा दुःख से
मेरे साँसों की डोर कट चुकी है
और इसका बोझ हवा को भी भारी पड़ रहा है
जिस ओर उठती हैं आँखें अँधेरा हो जाता है
यह किस दुरात्मा ने छल किया मुझसे
मुझ ‘‘जुहाक’’ की चेतना को चूमा-चाटा
और काले डसते नाग मुझे सौंप दिए
यह डंक उफ ! ऐ मेरे शरीर तू यहाँ आया ही क्यों
यह पीड़ा ! मेरा सुंदर शरीर छलनी हुआ
आकाश की ओर देखूँ पर वह भी तप रहा है
पैरों के नीचे ज़मीन है पर वह भी घूम रही है
मैं निर्जन रास्ते का भटका मुसाफ़िर हॅूँ
कर रहा हूँ प्रतीक्षा निरूद्दश्य किसी पल की
आज सवेरे खिड़की पर मेरी बोला एक कागा
हाय यह आँगन भी बिना हरियाली के रहा
मेरा ध्यान भटका हुआ था कि जब हरियाली उगाने की ऋतु भी निकल गई
नहीं लगा सका मैं अपनी इस दशा का अनुमान
चमत्कार के समय यदि क्षणों का हिसाब नहीं होता
तो क्या यह संभव है कि शाम तक अलौकिक छबीलियाँ
तपती ज़मीन को ‘किमखाब’ <ref>यह एक फ़ारसी उक्ति का अनुवाद है।</ref> से ढक लें
मैने सोचा कि प्रतीक्षा करते-करते मेरे बाल सफे़द पड़ जाएँगे
उस पेशेवर भुलक्कड़ प्रेमिका से क्या आशा रखूँ
चूक जाएगा यह जीवन झूठी आशाओं का दामन प़कड़कर
घेरे है स्वप्नों की छायाएँ जागरूकता को
देखा मैंने ‘रूमी’ को अपनी धुन में मस्त गाते हुए
कहा मैंने कि बहुत ढूँढा कहीं पर वह मिला ना
कहा उसने ‘‘मिले ना जो है वही आकांक्षा मेरी’’’
मैंने देखा जन्मा था ‘शंकर’ गुसाई
वह बोला कब जन्मा था कि जो जब जन्म लूँगा
वह उधर बुद्धि सागर का पनडुब्बा ‘गज़ाली’
हाथ में ख़ाली प्याला लिए कह रहा पी लो
मैं पीता अगर मेरे कंधों की यह पीड़ा कुछ कम होती
हाय सर्पबेधी पन्ना भी हुआ मुझे दुर्लभ !
मेरे शरीर को इन्होंने छलनी किया, आत्मा को घाव ही घाव कर दिया
कोई मुझे इन साँपों को वश में करने की बीन ला दे
कोई मेरा विलाप भी तो सुने
क्या मैं विरह का आकांक्षी हॅूँ ? क्या मुझे अकेलापन प्यारा है ?
उसे देख लेता तो मैं आग से भी खेल सकता
वह आ जाती तो मैं अपने आपको भी ढूँढ़ पाता