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काठ पर बैसलीह / कालीकान्त झा ‘बूच’

काठ पर बैसलीह एक नव यौवना
मुँह केँ पखारि दीप वारिए मे वारि
हाथ वाम आबि आयल वुटम पर
ससरल साड़ी कि पसरल प्रकाश पुंज
सूखल सरोज ओज ल' क' फुला गेल
वैसल समाधि साधि व्याकुल वगुलबा
कि तावते तुला गेल एक सोझ पछवा
यावत् सम्हारि उर आँचर पसारथि कि
बीचहिं सं कनखी चलौलक सरधुआ