Last modified on 30 अक्टूबर 2013, at 11:18

कादम्बरी / पृष्ठ 100 / दामोदर झा

9.
सेनापति गहि प्यर कहथि स्वामी, धैरल धरु
जिबिते छथि नहि ओ मुइलाहय से अवगत करु।
एतय जेना नहि अयला से सब बात कहै छी
सब हुनकर वृत्तान्त निवेदन तुरत करै छी॥

10.
कहलनि चन्द्रापीड़ हमर मानस नहि मानय
वैशम्पायन हमरा छोड़ि रहब नहि जानय।
कहल बलाहक झूठ निवेदन हम नहि करबे
स्वामिवंचने घोर नरकमे हम नहि पड़बे॥

11.
अपने दय आदेश ओतयसँ एहिठाँ अयलहुँ
अपनेके अरियाति हमहुँ सब खेमा गेलहुँ।
स्वस्थ जकाँ दिन राति ताहि दिन सब किछ कयले
वैशम्पायन भोर होइत वन मारग लेले॥

12.
संगमे छल असबार तीन सय किछु हाथी छल
हास विनोद करैत चलय संग जे साथी छल।
अच्छोदक तट जा सुन्दर थल देखि उतरला
जेना हेरायल हो किछु तहिना विपिन विचरला॥

13.
छल उद्देश्य सरोवर तट आनन्द मनाबी
जल विहार कय रम्य विपिन विचरण सुख पाबी।
किन्तु ततय जइते ओ अपन विचार बिसरला
मतिक्षिप्त भय सकल लता मण्डपहिं बिचरला॥