Last modified on 30 अक्टूबर 2013, at 11:24

कादम्बरी / पृष्ठ 108 / दामोदर झा

49.
कय दुरागमन संगहि लगले घरि हम आयब
वैशम्पायन संग उज्जैनक हर्ष बढ़ायब।
चारू मातु पिताके छल पुतोहु देखै लय
अभिलाषा बड़ प्रबल निछाउरि सबके दै लय॥

50.
दुहु पुतोहुके पाबि दुहू घर मंगल बढ़ते
पछिला दुख सब टरत हर्ष मानसपर चढ़ते।
सोचथि ई युवराज एँड़ दय अश्व बढ़ाबथि
बड़को खाधि फनाय देथि जँ पथमे पाबथि॥

51.
वर्षा ऋतु ता आबि गेल मारग घेरै लय
चन्द्रापीड़ मनोरथ ऊपर जल फेरै लय।
सिंहनाद कय करिया वारिद झमकय लागल
बिजुली नभ उर चीरि छनहि छन चमकय लागल॥

52.
तरुपर खसय हड़ाक वज्र रोइयाँ सिहरै छल
छोटो नदी अथाह पसरि पथमे लहरै छल।
ताहूपर युवराज कतहु यात्रा नहि रोकल
बाधा सहबे सेसर पुरुषक थिति अवलोकल॥

53.
पड़य मघाकेर बुन्द उपल जनु चोट लगै छल
हबा चलय सुसकारि शरीरहुँ कम्प जगै छल।
आगू आँखिक झटक बचओने कुमर चलै छथि
गति रोकै लय के कहता पछोड़ सब लै छथि॥