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कादम्बरी / पृष्ठ 113 / दामोदर झा

74.
कादम्बरी स्वस्थमन छल तकरहु दुख देले
हमरहि कारण विरहानलमे आहुति भेले।
बनल छलाहय मित्र कुमार न किछु हित कयलहुँ
एतय सखीसँ नहि हुनकर विवाह करबओलहुँ॥

75.
सब टा काज विधाता सोचल हमर बिगाड़थि
इष्ट मित्र जे बनथि ताहि पहिनहिं संहारथि।
कादम्बरी छलय बेहोश ताहि नहि पूछल
जल्दी चली तपोवन एतबे मनमे सोचल॥

76.
सब तजि भागि ओतयसँ पुनि निज आश्रम अयलहुँ
तप आरम्भल तीव्र शरीरहुँ सुखबय लगलहुँ।
मतिक्षिप्त सन ब्राह्मण युवक एक ता आयल
चौंकि बिलोकय कामबाणसँ जनु छल घायल॥

77.
चीन्हल जकाँ सुमिरि हमरा पुनि पुनि निरखैछल
पागल जकाँ एतय सुतलहुँ इत्यादि भखै छल।
लगमे आबि कहल सुन्दरि की कर्म करै छह
अनुपम रूप मनोहर यौवन वृथा ढरै छह॥

78.
यौवनसुख लहि तेसरपनमे तपए विज्ञ जन
काम विलासक बिनु भोगे अयलह निर्जन वन।
तोरा सन सुकुमारि तपय जँ रागविरत भय
व्यर्थे करथि घमण्ड कुसुमशर धतु निज कर लय॥