Last modified on 31 अक्टूबर 2013, at 15:26

कादम्बरी / पृष्ठ 133 / दामोदर झा

74.
कहल विलासवती सखि, सुनलहुँ दुहु घर वज्र खसल अछि
सभा भवनमे त्वरितक आयल अछि जे सब निरखल अछि।
लाज धाखके तजि दौड़लि दुहु सब पुरुषक रेड़ामे
भेलि बताहि जकाँ नहि बूझथि जे कहु किछु पेंड़ामे॥
75.
देखि हाल भूपालक मूर्च्छित खसलि दुहू धरतीपर
समाचार सबके सब पूछय क्यो नहि दै दल उत्तर।
धैरज धय शुकनास हवा कय पानिक छीटा देलनि
किछ सन्तोषक बातो कहितो सबके होश करओलनि॥

76.
तखन बलाहक केर चिट्ठी लय आद्योपान्त सुनओलनि
बड़ अजगुत वृत्तान्त लिखल अछि ई भूपतिके कहलनि।
मुइलोपर तनु निर्विकार अछि पहिले पहिल सुनल अछि
कादम्बरी अमृत वंशक अछि कारण परस गुनल अछि॥

77.
भूपति, हम दुहु भाग्यवान छी ई कथ अवितथ मान
जकरा घर देवता पुत्र हो तकरा कते बखानू।
हुनका दुहु केर शाप भेल हमरा दुहुके वरदाने
लोकपाल केर बाप बनक पओलहुँ जगमे सम्माने॥

78.
देखल स्वप्न विलासवती केर मुखमे चन्द्र समायल
मनोरमा केर कोरामे द्विज पुण्डरीक धय आयल।
सब टा बात मिलल दूनू ई जनम पुत्र बनि लेलनि
शापक भोग स्वयं करितो हमरा सबके सुख देलनि॥