Last modified on 31 अक्टूबर 2013, at 15:29

कादम्बरी / पृष्ठ 138 / दामोदर झा

99.
तो स्वरूप पुण्यक बेटी, मन दय शिव आराधह
जेना पूर्व देहहुसँ भेटथुन तेना तपस्या साधह।
तहिखन भूपति संग उठल सब जाय लता मण्डपमे
ठाठ बाठ फेकल उतारि तनु चित्त लगओलनि तपमे॥

100.
सब समाज संग मेघनादके भूपति नगर पठओलनि
कहलो पर नहि गेला बलाहक ओ हिनके संग रहलनि।
रानी राजा मनोरमा शुकनास बलाहक पंचम
आश्रम मानि गुफामे रहला कय इन्द्रियके संयम॥

101.
कादम्बरी महाश्वेता जनकक घरसँ अनबाबथि
दिव्य वस्तु सादर हिनका लग आबि स्वयं पहुँचाबथि।
किन्तु कन्द फल बल्कल तजि ई आन वस्तु नहि छूबथि
आश्रम गुफा मध्य बैसल निशि दिन समाधिमे डूबथि॥

102.
प्राते चन्द्रापीड़क लग जा नित दरसन कय आबथि
पुनि देवता पितर हिनकर जीवन लय सतत मनाबथि।
अद्यावधि अच्छोदक तट वन भूप देह साधै छथि
मुनि जनके लजबथि कठोर तप शिवके आराधै छथि॥

103.
एतबा कहि हाफी कय मुनि जाबलि अङैठी कयलनि
भरि रातुक जगने अलसायल तैओ पुनि ई कहलनि।
वैशम्पायन छथि शुकपोत महाश्वेता शापहिसँ
शाप जकाँ अभिशापो पड़लनि जनकक निज पापहिसँ॥