104.
पूछल मुनि जन मुनि रहितहुँ ई कामे किए व्यथित भय
नहि शरीरके बचा सकल धय धैर्य विकार मथित कय।
सुनि जाबलि महामुनि कहलनि नारी रजसँ केवल
पुण्डरीक जनमल छल ते ओ छलय हृदयसँ दुर्बल।
105.
एतबा कहिते पूर्व भागमे तम छल फाटल
पम्पा तीरक खग रातुक नीरवता काटल।
उठला मुनि जन सन्ध्यादिक नितकर्म करै लय
देवार्चन पितरक तर्पणो समाधि धरै लय॥