Last modified on 31 अक्टूबर 2013, at 16:05

कादम्बरी / पृष्ठ 147 / दामोदर झा

34.
पुनि कहलहुँ हम मुनि ब्राह्मण छी तप अरण्यकेर
छोडू हमरा भागी हयबे बहुत पुण्य केर।
ओ कहलक हम विप्र देव नहि पैघ जनै छी
स्वामीकेर आदेश जीवनक लक्ष्य गै छी॥

35.
किए प्रलाप करै छी अयलहुँ भील भवनमे
बन्ध मोक्ष अधिकारी स्वामीकेर आङनमे।
ई सुनि चौंकल आँखि दहो दिशि ताकय लगलहुँ
जे किछु देखल क्षुब्ध हृदयसँ तम्मित रहलहुँ॥

37.
सड़ल मांसकेर गन्ध नाकके फाड़य लागल
निर्धिन वातावरण हृदयके ताड़य लागल।
ठाम ठाम हाड़क बड़ बड़ टा ढेर बनल छल
एक भागमे काँचे चमड़ा रक्त सनल छल॥

38.
वनमुर्गाके पकड़ि आनि को कतहु कटै छल
आपसमे बड़का सूगरकेर मांस बँटै छल।
जानबरक चरबी शरीर मालिस्त करै छल
बड़को हरिण फसै लय जाल दुरुस्त करै छल॥