74. एहिना दुख बढ़िते रहनि भेला भूप अचेत। सब उपचार वृथा छलनि मुइला नेहक खेत॥ 75. वैशम्पायन शुक तथा विरह महाश्वेताक। कष्ट भोगि पंचत्व फल पओलनि कामुकताक॥