9.
ततय महाश्वेता फूलक डाला भरि शंकरके आराधथि
कादम्बरी अपन प्रियतमक शरीर सजाय मनोरथ साधथि।
चैत मास दिन परम मनोहर सब क्यो निज निज काज करै छल
कादम्बरी गुफामे छलि नीरवता लगम राज करै छल॥
10.
मदलेखा अच्छोद सरोवरमे नहाइ लय तैखन गेली
जल-थल वन शोभा अवलोकय बैसि घाटपर बेसुधि भेलो।
कादम्बरी स्वयं सज्जित भय चन्द्रापीड़क देह नहओलनि
मृदुल वस्त्रसँ पोछि पाछि सुन्दर कोमल दुकूल पहिरओलनि॥
11.
मृगमद सुरभित हरिचन्दनसँ सगर देह अनुलेपन कयलनि
ककबा ल’ क’ केश सजायल कस्तूरीकेर तिलक लगओलनि।
छोट छोट फूलक गजरा लय कर युग बाँहि उपर पहिरओलनि
रंग बिरंगक मालासँ छातीके शोभा धाम बनओलनि॥
12.
नखशिख जते रहनि जे गहना सब पहिरा शृंगारित कयलनि
बड़का अयना सोझ राखि दुहुदिशि छवि लखि अपरुब सुखप ओलनि
मास वसन्त प्रहारय मनसिज उमगल मन सम्हारि नहि पओलनि
शंकित आँखि महाश्वेता आश्रम दिशि दय पिय हृदय लगओलनि।
13.
जिविते जकाँ पड़लि छातीपर अपन बाँहिसँ गरदनि जकड़ल
काम विवश पुनि पुनि मुख चूमल हुनकर अधर ठोरसँ पकड़ल।
पीबथि मधुर अधर रस तिरपित जन्मावधि प्रथमे छल पायल
ताही छन सगरे शरीरमे चन्द्रापीड़क जीवन आयल॥