44.
राज्य सम्हारू अपन आब हम सब तँ घूरि नगर नहि जायब
योग समाधि साधि निज आत्मा दिव्य जोतिमे लीन करायब।
चन्द्रापीड़ नृपति जनकक आज्ञा लहि भूतल दिशि चलि देले
ताहि ठाम पाँचो जन पूर्वक अपना-अपना आश्रम गेले॥
45.
सब समाज सङ भूपति चन्द्रापीड़ नगर उज्जयिनी अयला
राजभवनमे उत्सव होइ छल नगरक जन आनन्द समयला।
भूप चक्रवर्ती छथि चन्द्रापीड़ नृपति सब आबि नमै छल
मन्त्री पुण्डरीक जन पालथि क्यो नहि तीनू ताप जनै छल।
36.
मेघनाद बड़का सेनापति छथि जग शत्रु कतहु नहि क्यो छल
जकरा जे किछ खगता हो सब पाबय हिनक नाम जपितो छल।
बैसल छल सब क्यो कोनो दिन अन्तःपुरकेर सभाभवनमे
छलय प्रसन्न सबहिं उत्कण्ठा किछु छल कादम्बरीक मनमे॥
47.
हाथ जोड़ि भूपतिके कहलनि नाथ हमर ई दीन विनय अछि
कहू पत्रलेखा हमरा बिच नहि लखाय ओ कोना कतय अछि।
अपने जीलहुँ पुण्डरीक सङ हम छी एतय महाश्वेता अछि
एतय तरलिका मदलेखा केवल ओकरे नहि कतहु पता छछि॥
48.
कहलनि चन्द्रापीड़ बिहुँसि ओ हमर प्रिया रोहिणी छली हय
हमर एतय देहावसान लखि पुनि घुरि चन्द्रलोक गेली हय।
जहिखन हमरा शाप भेल सेवा करबालय ओ अवतरली
कतबो मना कयल हम तैओ नेहे चन्द्रलोक नहि रहली॥