14.
तपते लोहक सूआ सन ओ प्रविशि श्रवणमे
देलक वचन असह्य कष्ट रानीके मनमे।
मन्दिरसँ बहराय अपन घर अयली पलमे
आँचरसँ मुह झाँपि बैसि कानथि भूतलमे॥
15.
सखी-सहेली कते कहल नहि धैरज धयलनि
नहि उठली भोजन लय नहि रोदन बिरमओलनि।
परिजनसँ सुनि बात नृपति पीड़ा केर हिनकर
अन्तःपुर जा मृदुल वचन कहलनि कर धय कर॥
16.
प्रिये, कोन आरम्भ कयल, बिनु काज कनै छी
हमरापर ई क्रोध अहाँ केर पहिल जनै छी।
आनो जे अछि लोक तकर हमरे वश जीवन
के उपजओलक क्रोध, ककर प्रिय शमन-निकेतन॥
17.
राजा बिनती कयल बहुत ओ किछ नहि बजली
सिसकि-सिसकि मुह झाँपि बराबरि कनिते रहली।
सखी हुनक सब बात कहल सङ मन्दिरमे छल
नहि अपुत्रके गति पुराणमे जे सुनने छल॥
18.
भूपो ताहि कथासँ शोक-परायण भय क
कानय लगला प्रिया-वदन छातीमे लय क।
बहु छन सिसकी कानि स्वयं किछ धैरज धय क’
आँखि पोछि दयिताक कहल स्वर गद्गद् कय क॥