29.
त्हियेसँ धन-दान यज्ञ होमादिक करिते
शिव आराधथि व्रती सभक मन विस्मय भरिते।
सपना देखल एक रातिमे ओ अवनीश्वर
प्रविशल वदन विलासवती केर पूर्ण कलाधर॥
30.
उठि भोरे शुकनासहुके कहलनि से सपना
हर्षित भय शुकनास कहल बीतल जे अपना।
हमहूँ निज पत्नी मनोरमा केर अंकहिमे
देखल पुण्डरीक राखल एक द्विज सपनहिमे॥
31.
देव, मनोरथ पूर हयत किछए दिन थमहूँ
राजकुमारक खेल-तमाशा देखब हमहूँ।
शिशुचर्यामे विज्ञ दास-दासीक प्रबन्धे
व्यस्त रहब हम सतत खेलओना केर सम्बन्धे।
32.
किछए दिनमे गर्भक लक्षण रानी धयलनि
सखी सकल कहि भूपहुके आनन्दित कयलनि।
राजा सबके वस्त्राभरण सुशोभित कयलनि
गर्भक पोषण विज्ञ जाकि दासी सब रखलनि॥
33.
धीरे-धीरे गर्भ प्रकट सब आनन्दित छल
इष्ट देवकें पूजि सुअवसर सब तकैत छल।
पूरल दशमो मास निराशा केर दुख उसरल
राज-भवनमे पुत्र जन्म केर उत्सव पसरल॥