Last modified on 25 अक्टूबर 2013, at 18:20

कादम्बरी / पृष्ठ 24 / दामोदर झा

39.
तखन राजगृहमे नानाविध वाद्य बजइ छल
चारू दिशि कुंकुम अबीर केर वर्षा होइ छल।
नीच-ऊँच केर भेद-भाव नहि क्यो बूझै छल।
के छी हम की करब उचित ई नहि सूझै छल॥

40.
राज-भवनमे सब थल रंगक कादो भेने
पिछड़ि खसय बहु लोक उपायन भारो लेने।
फूटि दही केर छाँछ माछ थारहिमे लेड़हल
बनल सकल जन भूत मूर्ख वा जे छल पड़हल॥

41.
अपना घरमे निरखि भूप उत्सवकेर हलचल
स्वयं पहुँचला सचिवक घर सङ लय सब दलबल।
अपना घरसँ अधिक ततय उत्सव करबओलनि
याचक गणके बाँटि सुवर्ण धनी बनबओलनि॥

42.
एहिना उत्सव-मग्न लोक बीतल छठिहारो
सूतीस्नानक संग कयल कौलिक व्यवहारो।
शुभ दिनमे भूपाल पूजि सब देव-पितरके
भूषण वस्त्र सजाओल परिजन-सहित कुमरके॥

43.
राखल चन्द्रापीड़ नाम सपना अनुसारहिं
वैशम्पायन नाम भेल शुकनास कमारहिं।
दूनू बालक मातु-पिताक मोद करिते छल
हास-विलासे अधबोलीसँ मन हरिते छल॥