59.
पकड़ल नगरक बाट विविध बाजा बजिते छल
धीरे-धीरे सब समाज आगू बढ़िते छल
पहुँचल नगरक माँझ दुहू दिशि भीड़ भाड़ छल
राजपुरुष सब सड़कक काते बनल आड़ छल॥
60.
कोठहुपर बुढियाके पाछ कय युवती-जन
आँचरहुक न सम्हार लखय नृपपुत्रक आनन।
बालक वृद्ध युवा सब क्यो अपना-अपनी कय
आगू दौड़ि विलोकय निर्निमेष पपनी लय॥
61.
पुर-तरुणी सब राजमार्गपर जाइत देखय
दृष्टिमात्रसँ अपनाके आलिंगित लेखय।
कहल सखीके हमरा दिशि देखल भरि लोचन
के तरुनी बड़ भाग जकर ई नीची-मोचन॥
62.
अहिना सबहुक आँखिके दैत सुधारस-पान।
कुमर पहुँवलर जर ततसख् भूपक जतय मकान॥