19.
भूपक सत्पथ वृत्ति दृष्टिके सौतिन जकाँ अचेत करै अछि
तकरा बिना भेल आन्हर-सन राजा अपटी खेत मरै अछि।
विरले लोक नीक उपदेशय के हिनकर भू्र भंग सहै अछि
हृदय पैसि क चापलूस गण संग लय सब दुर्भाग गहै अछि॥
20.
जे आपातमनोरम मधुरस विषय ताहिमे हिनका खींचय
मुख-माधुर्य निपुण पण्डित सब निज वश कय हिनकर सब नोचय।
धूर्त जनक बहकाओल बेसुधि विषयासक्ते रहय निरन्तर
गीतरक्त हरिणे सन विनशय शत्रुक हाथे ओ अवनीश्वर॥
21.
वनिता विषय सकल विषयहुसँ बढ़ल लोकके सतत नचाबय
आन विषय विषसँ बचितो अछि एकरा धयने होस न आबय।
दुर्जनसँ विश्वास हटओने विषयासक्तिक प्रसर बचओने
साधु संग अनुराग राखि जन सकल पदारथ जग अछि पओने॥
22.
धूर्त लोक नहि ठकय जाहिसँ सज्जनगण नहि देखि उपेखथि
भरि पोखरि घिरनीक माछ सन वनिता गण नहि जेता नचाबथि।
तहिना सावधान भय निमहब सदिखन कामक घात बचओने
लक्ष्मी मदक निशा अति दारुण बुधसँ प्रतीकार करबओने॥
23.
यद्यपि धीर-धुरीणे छी पुनि पिता नीक संस्कार करओलनि
पढ़ा लिखा सब कला सिखाके सब विधि योग्य पुरुष बनबओलनि।
राजनीति व्यवहार कुशल छी गुण परिपाक सकल धयने अछि
अति सन्तोष अहाँक निपुणतासँ हमरा मुखरित कयने अछि॥