59.
स्वयं खसल अमृते सन फलसँ हाथक बासन भरलै लगले
राजकुमारके कहल अतिथिवर! भोजन करिऔ जे किछु अनले।
गाछो हिनका भिक्षा दै छनि ई लखि कुमर अचम्भित भेले
आज्ञाकारी शिष्य जकाँ वचनक अनुसारहिं पारस लेले॥
60.
चन्द्रापीड़हिं सुखासान कए फल लय गिरि झरना लग गेले
देहक रक्षामात्र हेतु किछ खाय पीबि जल सुस्थित भेले।
पुनि आयल अपना आसनपर बैसलि हिनके बात चलायल
तारापीड़ विलासवती राज्यक चर्चहि किछु समय बितायल॥
61.
चन्द्रापीड़ कुतूहलवश अपना मनमे किछु बात बिचारथि
साहस छल कमजोर बजै लय जे किछु छल से मुखहिं सम्हारथि
जहिना हम सब बात कहलिऐ पुछलापर छल-कपट दूर कय
निज वृत्तान्त कहति की तहिना हमरा पुछलासँ उदार भय॥
62.
देखल हिनक प्रथम मधुराकृति चरित मनोहर
सरल प्रकृति दाक्षिण्य भावसँ पौलनि अवसर।
पुछलापर निश्चित ई निज वृत्तान्त बखानति
ई गुनि राजकुमार पुछै लय छला तरलमति॥