24.
एक रूप केर पक्षपात कय गुण दोषों नहि देखथि
कामदेव अपना वश कयलनि अगम-सुगम नहि लेखथि।
कतहु शाप दय भस्म करथि डरि हँटबालय मन कयलहुँ
किन्तु पयर आगू लय बढ़ले हुनके दिशि लगिचयलहुँ॥
25.
कयल प्रणाम वन्द्य मुनि जन बुझि दूनू हाथ नबै छल
किन्तु नयन दुहु हुनके मुख पंकज मकरन्द पिबै छल।
हमर दशा लखि हुनको मनके मनसिज कयलक घायल
भावी अछि दुर्लंघ्य जकर वशमे ओ मुनि चलि आयल॥
26.
जनु कामक उपदेशल हम हुनकर विकारके बूझल
भेलहुँ ढीठ हुनक परिचय पुछवाक बहाना सूझल।
मुनि-कुमार हुनके सतीर्थ तप तेज वेष सदृशे छल
निकटे ठाढ़ हिनक परिचय तनिका दिशि जा हम पूछल॥
27.
कहू महाशय, ई के छथि, की नाम, कोना अयलाहय
फूल कतयसँ कान उपर ई कोन तरुक लयला हय।
ओ कहलनि सुर दानव पूजित सुरपुर वासी मुनिवर
श्वेतकेतु छथि महातपोधन रूपे जित नलकूबर॥
28.
कोनो दिन ओ कमल सरोवरमे नहाइ लय गेले
कमलक ऊपर कमला बैसलि तनिक दृष्टिगत भेले।
ओ हिनकर दर्शनहिं मात्रसँ आलिंगन सुख पओलनि
पुण्डरीक आसनपर लगले रजस्खलन भय गेलनि॥