29.
ताहि अमोध रजहिं सँ जनमल सपदि कुमार मनोहर
शिशु कोरा लय लक्ष्मी कहलनि मुनिके जोड़ि युगल कर।
मुनिवर, ई अपनेक पुत्र थिक सदय नयनसँ देखू
दैवी गति एहने विचित्र अछि अजगुत नहि किछ लेख॥
30.
योगदृष्टिसँ देखि मुनिहुँ बुझि ग्रहण तनयके कयलनि
नाम जन्म अनुसार बिचारल पुण्डरीक ई धयलनि।
ऋषिक कुलागत दशो विधाने कृत्य हिनक सब कयलनि
बालभाव बितले तप साधै लय वनभूमि पठओलनि॥
31.
सैह थिका ई पुण्डरीक सुनु मंजचरीक संभव के
चतुर्दशी गुनि गेल छलहुँ दुहु पूजय गिरिजा धवके।
नन्दन-वनक बीच रास्तासँ चलल छलहुँ कैलासे
हिनक रूप देखल वन-देवी मनमे भेल हुलासे॥
32.
परिजात केर फूल तोड़ि लग आबि नेहसँ कहलनि
अहाँ योग्य आभूषण अछि ई हिनक कानपर रखलनि।
इच्छा नहि रहितो ई हुनकर वचन टारि नहीं सकला
आज्ञा शिरोधारि हुनका नमि लाजे तुरत घसकला॥
33.
एतबा हिनका कहिते ओ मुनि किछु आगू बढ़ि अयला
अपन श्रवणसँ झट उतारि से फूल हाथसँ लयला।
चपले, पूछक वृथा परिश्रम अहाँ कियेक करै छी
जँ अति लोभ सुगन्धक अछि तँ ग्रहण करू हम दै छी॥